नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि फेसबुक जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लोगों के विचारों को प्रभावित करने की क्षमता है। उन्हें जवाबदेह होना चाहिए, फेसबुक द्वारा अपनाए गए “सरल दृष्टिकोण” को स्वीकार करना मुश्किल है कि यह केवल तीसरे पक्ष की जानकारी पोस्ट करने वाला एक मंच है और उस मामले को उत्पन्न करने, नियंत्रित करने या संशोधित करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत की ‘अनेकता में एकता’ को बाधित नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि दिल्ली में पिछले साल जैसी हिंसा को फिर से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता भारत की अनेकता में एकता की ताकत को किसी भी कीमत पर खराब नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और एमडी अजीत मोहन और अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा फेसबुक के अधिकारियों को दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति के सामने पेश होना होगा। फेसबुक जैसी संस्थाओं, जिनके भारत में लगभग 27 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स हैं, फेसबुक को उन लोगों के प्रति जवाबदेह रहना होगा। आपकों बता दें कि पिछले साल दिल्ली में हुई हिंसा से 200 लोग घायल हो गए थे जबकि 50 से अधिक लोगों की जान गई थी।
अपने 188 पन्नों के फैसले में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और हृषिकेश रॉय ने कहा कि सदस्यों समिति के सामने पेश होना होगा। दिल्ली दंगों के दैरान फेसबुक पर वीडियो और कंटेंट वायरल हुए थे, जिसे लेकर दिल्ली विधानसभा की समिति ने पिछले साल 10 और 18 सितंबर को फेसबुक को समन भेजा था। फेसबुक ने समन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया। हालांकि कोर्ट ने समिति को फेसबुक के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया है।