कोविड-19 पर भारत के मुगालते की आलोचना

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भारत कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रहा है। वर्ष 2020 की पहली लहर की तुलना में इस बार रोज़ नए मामलों और मरने वालों की संख्या भी काफी तेज़ी से बढ़ रही है। इस दौरान अस्पताल, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर और दवाइयों के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।

भारत में कोविड-19 के मामले मई में 4 लाख प्रतिदिन से अधिक हो चुके थे। कई शहरों में स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा चरमरा गया। महाराष्ट्र व दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में सरकार को कर्फ्यू और लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा। राज्य सरकारें स्वास्थ्य सुविधाओं और ऑक्सीजन संयंत्रों के निर्माण के प्रयास कर रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह तैयारी काफी पहले ही कर लेना चाहिए थी।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख श्रीनाथ रेड्डी के अनुसार वर्ष 2021 की शुरुआत में ही नीति निर्माता, मीडिया और जनता में यह मान्यता बनने लगी थी कि भारत में महामारी खत्म हो गई है, और हमने झुंड प्रतिरक्षा प्राप्त कर ली है। कुछ वैज्ञानिकों ने भी इस मत को हवा दी। दूसरी लहर न आने के विश्वास के चलते अर्थ व्यवस्था को मज़बूत करने के उद्देश्य से सभी गतिविधियां फिर से पहले की तरह शुरू कर दी गर्इं। भारत में इस वर्ष जनवरी और फरवरी में मामलों में कमी देखी गई थी, और मार्च में बड़े-बड़े सार्वजनिक समारोह आयोजित हुए और किसी प्रोटोकॉल का पालन नहीं हुआ। इसी माह पांच राज्यों में मतदान भी हुए जिसमें प्रधानमंत्री सहित कई राजनेताओं ने सैकड़ों बड़ी रैलियां कीं। हालांकि चुनाव आयोग ने बड़ी रैलियां और रोड-शो आयोजन के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी भी दी, लेकिन न किसी ने इस पर कोई ध्यान दिया और न ही आयोग ने किसी पर कोई कार्रवाई की।

कोविड मामलों में निरंतर वृद्धि के बाद भी कुंभ मेला आयोजित करने की अनुमति दी गई। इस दौरान लाखों लोगों ने गंगा नदी में डुबकी लगाई। यह त्योहार 1 अप्रैल को शुरू हुआ और 17 दिन बाद स्थानीय अधिकारियों द्वारा इस पर रोक लगाई गई। स्थानीय अधिकारियों ने इस त्योहार में भाग लेने आए लोगों में कोविड-19 के 2000 मामलों की सूचना दी। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी गंभीर परिस्थितियों में बड़े सामूहिक समारोहों, यात्राओं और भीड़-भाड़ जुटाने से बचना चाहिए था। इसके साथ ही मास्क जैसे सुरक्षा उपायों को अपनाना भी आवश्यक था। इन सावधानियों से सामूहिक समारोहों में न केवल लोग सुरक्षित रहते बल्कि उनको महामारी के खत्म होने के गलत संकेत भी नहीं मिलते।

वर्तमान में अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से देशभर में संकट की स्थिति बन गई है। कई गैर-सरकारी संगठन और वालंटियर्स ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिदिन हज़ारों लोग ऑक्सीजन सिलिंडर या अस्पताल में ऑक्सीजन युक्त बिस्तर या वेंटीलेटर के लिए गुहार लगा रहे हैं।

भारत सरकार द्वारा अप्रैल की शुरुआत में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में ऑक्सीजन का दैनिक उत्पादन 7127 मीट्रिक टन और खपत 3842 मीट्रिक टन थी। इसके कुछ ही दिनों के बाद जब कुछ अस्पतालों ने ऑक्सीजन की कमी की जानकारी उच्च न्यायलय को दी तो पता चला कि ऑक्सीजन की प्रतिदिन खपत 8000 मीट्रिक टन से भी अधिक हो चुकी है।

केंद्र और राज्य सरकारों ने पहली लहर के थमने के बाद अस्पतालों में की गई ऑक्सीजन व्यवस्था को वापस ले लिया था। हालांकि, उस समय की स्थिति को देखते हुए शायद यह एक ठीक निर्णय था लेकिन सरकारी प्रणाली में इतना लचीलापन नहीं था कि कोविड मामले बढ़ने पर एक बार फिर ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सके।

ऑक्सीजन की आपूर्ति और दवाओं के लिए युरोपीय संघ तथा जर्मनी ने हर संभव मदद का वादा किया है। इसके अलावा भारत सरकार ने तरल ऑक्सीजन कंटेनरों को एयरलिफ्ट करने के लिए हवाई जहाज़ भी भेजे हैं। अमेरिका ने भी कहा है कि वह कोविड-19 टीका तैयार करने के लिए आवश्यक कच्चा माल भेज रहा है और ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाले उपकरण भेजने का भी प्रयास कर रहा है।

भारत में बढ़ते हुए कोविड-19 मामलों ने विदेशी सरकारों को अधिक सतर्क कर दिया है। कई देशों ने भारत से आने वाले लोगों पर रोक लगा दी है।

टीकाकरण के मामले में निर्यात के चलते भारत स्वयं के लिए टीकों की कमी का सामना कर रहा है। जिन लोगों को टीके की पहली खुराक मिल चुकी है उनको दूसरी खुराक नहीं मिल पा रही है। देश भर के टीकाकरण केंद्रों से टीकों की कमी की शिकायतें आ रही हैं। अशोका युनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील इसके पीछे खराब नियोजन को कारण बताते हैं। भारत ने टीका निर्माताओं को उपयुक्त आदेश ही नहीं दिए ताकि वे पर्याप्त मात्रा में खुराक तैयार करके रख सकें।

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर भारत सरकार ने पिछली बार 8 अप्रैल को सूचित किया कि उसके पास 2.4 करोड़ टीकों का स्टॉक है। 26 अप्रैल तक भारत में 14.5 करोड़ खुराकें दी जा चुकी थीं और जुलाई तक 50 करोड़ टीके लगाने का आश्वासन दिया गया है। इस बीच 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के टीकाकरण की घोषणा भी कर दी गई है। हैरानी की बात है कि टीकों की कमी के बाद भी भारत डबल्यूएचओ और कोवैक्स सुविधा में व्यावसायिक रूप से टीकों का निर्यात जारी रखे है। वैसे तो टीका कूटनीति और निर्यात की नीति में कोई समस्या नहीं है लेकिन भारत ने अपनी मांग का कम आकलन किया है।

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