हिंदू कैलेंडर में हर महीने आने वाली पूर्णिमा शुक्लपक्ष की 15वीं तिथि होती है। इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं वाला होता है। यानी पूर्ण होता है। इसलिए इसे पूर्णिमा कहा गया है। इस तिथि को धर्मग्रंथों में पर्व कहा गया है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा पर भगवान विष्णु का वास जल में होता है। इसलिए तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। आषाढ़ महीने की पूर्णिमा पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा भी की जाती है। इस दिन किए गए दान और उपवास से अक्षय फल मिलता है।
आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। इस महीने की पूर्णिमा पर भगवान शिव-पार्वती की पूजा के साथ कोकिला व्रत किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव दांपत्य सुख बढ़ता है और अविवाहित कन्याओं को अच्छा वर मिलता है। इस दिन महर्षि वेद व्यास की जयंती मनाई जाती है। इसलिए गुरु पूजा की परंपरा होने से गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है।
ज्योतिष में पूर्णिमा का महत्व
सूर्य से चन्द्रमा का अन्तर जब 169 से 180 तक होता है, तब पूर्णिमा तिथि होती है। इसके स्वामी स्वयं चन्द्र देव ही हैं। पूर्णिमान्त काल में सूर्य और चन्द्र एकदम आमने-सामने होते हैं। यानी इन दोनों ग्रहों की स्थिति से समसप्तक योग बनता है। पूर्णिमा का विशेष नाम सौम्या है। यह पूर्णा तिथि है। यानी पूर्णिमा पर किए गए शुभ काम का पूरा फल प्राप्त होता है। ज्योतिष ग्रंथों में पूर्णिमा तिथि की दिशा वायव्य बताई गई है।
हर महीने की पूर्णिमा पर होता है पर्व
हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व जरूर मनाया जाता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्त्व हैं। हर महीने की पूर्णिमा पर एक समय भोजन किया जाए और चंद्रमा या भगवान सत्यनारायण का व्रत करें तो हर तरह के सुख प्राप्त होते हैं। साथ ही समृद्धि और पद-प्रतिष्ठा भी मिलती है।