बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हैं जयशंकर प्रसाद – करुणाशंकर उपाध्याय

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मुंबई: 30 जनवरी 2021 को महाकवि जयशंकर प्रसाद जयंती के अवसर पर महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, हिंदी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय और महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय वेब गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के आरंभ में मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि जयशंकर प्रसाद बीसवीं सदी के सबसे बड़ रचनाकार हैं। इनका संपूर्ण साहित्य गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत विपुल और उत्कृष्ट है। आपने हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं का सूत्रपात करते हुए उसे विश्वस्तरीय बनाने का भी प्रयास किया। इनका लेखन भारतीय इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीयता को प्रशस्त रूप देने के साथ-साथ उसका नया पाठ भी तैयार करता है। प्रसादजी अपने युगबोध के प्रति अत्यंत सजग होकर आधुनिक सभ्यता की विसंगतियों पर प्रखर काव्यात्मक आक्रमण करते हैं।वे वैदिक ऋषियों की तरह ऋषिदृष्टि सम्पन्न रचनाकार हैं। प्रकृति संसर्ग से उनकी ऋषिदृष्टि खुलती है। इन्हें कोई विदेशी विचारधारा नियंत्रित नहीं कर सकी। इन्होंने आत्मविश्वास का दर्शन बनाकर भारतीय में अस्मिताबोध जगाया।

जयशंकर प्रसाद के प्रपौत्र और महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी विजय शंकर प्रसाद ने प्रसाद के जीवन के अनेक मार्मिक प्रसंग सुनाए। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें जब पुत्र रत्न प्राप्त हुआ और उसकी छठी मनाने की स्थिति आई, तो उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। जब वे अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करके आए, तो उस नवजात शिशु की भी मौत हो गई। फलतः वे अत्यंत निराश होकर बोले कि नियति ने उन्हें मुर्दाफुंकवा बना दिया है। इसके बाद मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. बी.आर.अंबेडकर विश्वविद्यालय, मऊ, मध्यप्रदेश की कुलपति डाॅ.आशा शुक्ल ने कहा कि प्रसाद के नारी पात्र अत्यंत सबल और स्वाधीन चेता हैं। वे परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानते। आपने अपने छात्र जीवन के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय में किए गए ध्रुवस्वामिनी नाटक के अभिनय की चर्चा करते हुए कहा कि प्रसाद जी ने उक्त नाटक के माध्यम से सबसे पहले नारी मुक्ति और विवाह मोक्ष की ओर ध्यान आकृष्ट किया।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ आलोचक डाॅ. विजयबहादुर सिंह ने जयशंकर प्रसाद को जातीय अस्मिता का बड़ा कवि बतलाया और कहा कि वे अपने समय के सबसे सजग रचनाकार थे। उन्होंने कहा, “प्रसाद निराला की तुलना में अपेक्षाकृत ज़्यादा सेक्यूलर कवि थे। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अपने अत्यंत विश्वसनीय नौकर की देखरेख में क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद को छिपा रखा था।”  उन्होंने विजयशंकर प्रसाद से आग्रह किया कि वे जयशंकर प्रसाद की प्रामाणिक जीवनी लिखें।

इस कार्यक्रम का संचालन महाराष्ट्र शासन के सांस्कृतिक विभाग के उपनिदेशक संजय निंबालकर ने किया और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डाॅ.सचिन गपाट ने ऑनलाइन जुड़े अतिथियों, विद्वानों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों और प्रतिभागियों का आभार माना।

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