मुंबई में कैसे कोरोना संक्रमण के ग्राफ में आ रही है गिरावट? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया …

कोरोना की दूसरी कहर के बीच मुंबई में कोरोना के नए मामलों में अब कमी देखी जा रही है. मुंबई में कोविड के नए मामलों को कैसे नियंत्रित किया गया और अफरातफरी से बचा गया, इसकी जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी. मुंबई में सोमवार को 1794 लोग, रविवार को 2403 लोग और 2678 लोग कोरोना से संक्रमित हुए थे.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा, ”मुंबई एक बड़ा शहर है. वहां कॉरपोरेशन (बीएमसी) और राज्य सरकार ने जो कदम उठाए वहां के प्रोसेस को आसान किया . हम बताना चाहते हैं. कंट्रोल रूम जो उनका था, मुंबई कॉरपोरेशन के स्तर पर न करते हुए, उसको 24 वॉर्ड में 24 कंट्रोल रूम बनाए गए.”

 

उन्होंने आगे कहा, ”जितने भी कोरोना टेस्ट रिजल्ट आते थे, उन टेस्ट रिजल्ट को मेन कंट्रोल रूम में भेजा गया. उसके बाद सभी कंट्रोल रूम में न सिर्फ फोन ऑपरेटर, वहां डॉक्टर और अन्य स्टाफ भी तैनात किए गए. एंबुलेंस को तैनात किया गया.”

लव अग्रवाल ने कहा कि जैसे ही मरीजों को अस्पताल की जरूरत महसूस होती. मरीजों को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया जाता. इस प्रोसेस की वजह से काफी राहत मिली. मुंबई में 800 एसयूवी को भी एंबुलेंस बनाया गया. इसे आईटी ऑपरेशन के द्वारा मॉनिटर किया जाता था. अस्पताल में बेड पता करने के लिए, एक सेंट्रलाइज डैशबोर्ड बनाया गया. ताकि मरीजों को परेशानी नहीं हो.

उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार इस तरह के बहुत से प्रांतों में भी इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. लव अग्रवाल ने कहा कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ समेत 18 राज्यों में रोजाना संक्रमण के मामलों में गिरावट देखी जा रही है.

उन्होंने कहा कि नाइट कर्फ्यू और लॉकडाउन की वजह से केस में कमी आ रही है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोग लापरवाही बरतें. अभी भी पूरी सावधानी रखनी होगी. सभी का सहयोग जरूरी है.

कोरोना काल : यूपी के गावों में मौतों से दहशत, प्रदेश सरकार का विशेष जांच अभियान बेअसर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में शहरों के बाद अब गावों में भी कोरोना कहर बरपा रहा है। गांवों में बुखार, कोरोना और इसके लक्षण वाले मरीजों की मौतों से दहशत है। हर गांव में हर दिन किसी न किसी की मौत की खबर आ रही है। प्रदेश के कई जिलों में तो गांवों के हालात काफी चिंताजनक हैं। बुलंदशहर के एक गांव में पिछले डेढ़ महीने में 28 लोगों की मौत हो चुकी है। कमोवेश ऐसे ही हालात प्रदेश के अन्य जिलों के भी हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में चलाया जा रहा अभियान भी बेअसर साबित हो रहा है।

प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना के कहर के बावजूद बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं नदारद हैं। मेडिकल स्टोर पर दवाओं की किल्‍लत है। डॉक्टरों से सलाह लेने की बजाए ज्यादातर लोग मेडिकल स्टोर से पूछकर दवाएं ले रहे हैं। इसके चलते दवा की दुकानों पर सुबह से शाम तक सबसे ज्‍यादा भीड़ देखने को मिल रही है। ज्यादातर संक्रमित अपने घर पर रहकर की इलाज करवा रहे हैं। कई गांवों से लोगों के बीमार होने और अचानक मौत होने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं।

ग्रामीण इलाकों में कोरोना से हो रही मौतों के बावजूद तमाम गांवों में लोग जांच से इंकार कर रहे हैं। गरीब और पिछड़े तबके के लोग बीमारी और मौतों की वजह कोरोना को नहीं मान रहे हैं। एक समुदाय विशेष के शहरी लोग भी कोरोना को अफवाह बता रहे हैं। तमाम लोग कोरोना के बारे में सवाल पूछने पर ही नाराज़ हो जाते हैं। बताते चलें कि कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में गत पांच मई से विशेष जांच अभियान भी चलाया जा रहा है।

UP Ambulance

कोरोना के चलते हो रही बेशुमार मौतों के बीच प्रदेश सरकार का दावा है कि कोरोना की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीमें ग्रामीण इलाकों में घर-घर जा रही हैं। अब तक 48 लाख 63 हज़ार 298 लोगों के घर टीम पहुंच चुकी है। इनमें 68 हज़ार 1 सौ 9 लोगों में कोरोना के मामूली लक्षण पाए गए। सहगल ने बताया कि इन सभी को दवाइयां दे दी गई हैं। इन सब के बीच लगातार हो रही मौतों से लो दहशत में हैं।

इमरान खान ने फिर अलापा कश्मीर राग, कहा- हिंदुस्तान से इस शर्त पर बातचीत को तैयार

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के पीएम (PM) इमरान खान ने दुनिया के सामने एक बार फिर से कश्मीर का राग अलापा है। इमरान ने कहा है कि जब तक भारत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के फैसले को वापस नहीं ले लेता तब तक पाकिस्तान उससे कोई बातचीत नहीं करेगा। बता दें कि भारत ने 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 के तहत अपने इस प्रदेश की विशेष स्थिति को समाप्त कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था।

पीएम (PM) इमरान खान के बयान से पहले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि वर्तमान में भारत के साथ कोई बातचीत नहीं हो रही है, लेकिन यदि भारत कश्मीर में पुरानी स्थिति को बहाल करता है तो वार्ता संभव है। इस्लामाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कुरैशी ने कहा कि जम्मू और कश्मीर भारत का आंतरिक मुद्दा नहीं हो सकता। यह संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में है और इस पर सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव हैं।

इधर, भारत ने बार बार कहा है कि जम्मू एवं कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और देश इस समस्या का समाधान करने में सक्षम है। नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को कहा है कि उसे सामान्य पड़ोसी के रिश्ते का वातावरण बनाने के लिए आतंक, शत्रुता और हिंसा का रास्ता छोड़ना होगा।

अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर की विशेष शक्तियों को वापस लेने के साथ ही इसे दो संघ शासित प्रदेशों में विभाजन की घोषणा के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध बिगड़ गए। भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय संविधान की धारा 370 से संबंधित मुद्दा देश का आंतरिक मामला था। हालांकि, हाल के दिनों में दोनों देशों के संबंधों में कुछ सुधार हुआ था जब दोनों देश नियंत्रण रेखा पर शांति बहाली के लिए फरवरी में सहमत हुए थे। इस शांति और बातचीत के लिए यूएई के पहल की थी।

जानलेवा बीमारियों के विरुद्ध जंग में रुकावट बना कोविड

मार्च 2020 में भारत में तालाबंदी के बाद से टीबी जैसी जानलेवा बीमारी में प्रतिदिन रिपोर्टेड मामलों में 70 प्रतिशत की कमी देखी गई। एक ऐसी बीमारी जिससे प्रति वर्ष 14 लाख लोगों की मृत्यु होती है उसमें अचानक इतनी गिरावट आना हैरत की बात है। लेकिन वर्तमान में कोविड-19 के चलते चिकित्सा संसाधनों का फोकस टीबी के निदान तथा उपचार से हट गया है। ऐसे में टीबी के संचरण में वृद्धि होने की आशंका है क्योंकि टीबी निकट संपर्क से फैलता है और लोग घरों में बंद हैं।

इस वर्ष मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बयान जारी किया है कि वैश्विक स्तर पर टीबी का इलाज प्राप्त करने वालों की संख्या में 10 लाख से अधिक की गिरावट आई है। संगठन का अनुमान है कि पिछले वर्ष सामान्य से पांच लाख अधिक लोगों की टीबी से मौत हुई है।

कोविड-19 के कारण तालाबंदी से खसरा, पोलियो, मेनिन्जाइटिस और कई टीकाकरण अभियान भी रोक दिए गए। इस तरह से लाखों बच्चों पर जानलेवा रोगों का खतरा बढ़ गया है जिनको टीकाकरण से रोका जा सकता था। इस दौरान कई स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्य कर्मचारियों को महामारी से लड़ने के काम में लगाया गया। इसके साथ ही आवश्यक दवाओं और उपकरणों के आयात-निर्यात में भी विलंब हुआ और कोविड-19 के डर से सामान्य से कम लोग क्लीनिकों पर इलाज के लिए गए।

वर्तमान में विश्लेषक ऐसी बीमारियों के प्रभाव का अनुमान लगा रहे हैं जिन्हें महामारी के दौरान अनदेखा किया गया है। इसके लिए शोधकर्ता कुछ अप्रत्यक्ष उपाय अपना रहे हैं। इनमें विशेष रूप से उन बच्चों की गणना की जा रही है जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है या फिर निदान नहीं हो सका है या फिर कुछ मॉडलों का सहारा लिया जा रहा है। अनुमान है कि कोविड-19 के प्रत्यक्ष प्रभाव की तुलना में अधिक हानि इन बीमारियों की अनदेखी से होगी जो लंबे समय तक बनी रहेगी। सबसे अधिक प्रभावित गरीब देश होंगे जिनके स्वास्थ्य तंत्र पहले से ही नाज़ुक स्थिति में हैं।

टीबी की विस्फोटक स्थिति

पिछले वर्ष, वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक मौतों के लिहाज़ से कोविड-19 टीबी से आगे निकल गया। लेकिन कम और मध्यम आय वाले देशों में टीबी अभी भी सबसे आगे है। टीबी एक बैक्टीरिया से फैलता है जो फेफड़ों को संक्रमित करते हुए धीरे-धीरे पीड़ित की जान ले लेता है। देखा जाए तो विश्व भर में दो अरब लोगों में छिपा हुआ टीबी बैक्टीरिया उपस्थित है जिसे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित कर रही है। इनमें से 5-10 प्रतिशत व्यक्तियों में उनके जीवनकाल में टीबी के सक्रिय होने की संभावना है। हालांकि, 100 वर्ष पुराना बीसीजी टीका बच्चों में टीबी के गंभीर रूपों को विकसित होने से तो रोक सकता है लेकिन यह संक्रमण को रोकने में सक्षम नहीं है।

टीबी से निपटने के लिए छह माह तक इलाज की आवश्यकता होती है। दवा-प्रतिरोधी किस्मों के मामलों में यह अवधि दो वर्ष तक हो सकती है। ऐसे में चिकित्सकों का ध्यान टीबी से हटकर कोविड-19 की ओर जाना काफी चिंताजनक है। वर्तमान महामारी के दौरान विश्व भर में संक्रामक श्वसन रोग से निपटने में सक्षम कुछ टीबी अस्पतालों को भी परिवर्तित कर दिया गया। क्लीनिक पहुंचने और दवाइयां खरीदने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। स्टॉप टीबी पार्टनरशिप और अन्य द्वारा विकसित मॉडल के अनुसार तीन माह की तालाबंदी के बाद यदि टीबी सेवाओं को सामान्य होने में 10 माह लगते हैं तो विश्व भर में 2020 से 2025 के दौरान टीबी के 63 लाख अतिरिक्त मामले हो सकते हैं और लगभग 14 लाख अतिरिक्त लोगों की मृत्यु हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में टीबी के 21 प्रतिशत (14 लाख) कम लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल पाई। इस आधार पर पांच लाख से अधिक लोगों की मृत्यु की आशंका है। हालांकि, भारत ने टीबी कार्यक्रमों को पुन:स्थापित करने का प्रयास किया है लेकिन पूर्व-कोविड समय की तुलना में 12 प्रतिशत कम मामलों का निदान कर पाया है।

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के डिप्टी कार्यकारी निदेशक सुवानंद साहू के अनुसार ठोस प्रयासों और वित्तीय सहायता से टीबी सेवाओं पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। भारत में फिलहाल टीबी रोगियों को एक बार में एक माह की दवाइयां दी जा रही हैं ताकि उन्हें बार-बार क्लीनिक न जाना पड़े। पूर्व में स्वास्थ्य कार्यकर्ता रोगियों को प्रत्येक खुराक अपने सामने देते थे, यह काम अब वीडियो के माध्यम से किया जा रहा है। कुछ टीबी केंद्रों में कोविड-19 और टीबी दोनों के लिए ही परीक्षण किए जा रहे हैं। इसके अलावा सक्रिय मामलों को खोजने के लिए अस्पतालों में बैठकर प्रतीक्षा करने की बजाय समुदाय के बीच जाकर रोगियों की पहचान के प्रयास किए जा रहे हैं।

खसरा का खतरा

महामारी से पहले 2019 में वैश्विक स्तर पर खसरा के लगभग 8.7 लाख मामले थे। इसमें 2.1 लाख लोगों की मृत्यु भी हुई जिनमें अधिकांश बच्चे थे। यह कई दशकों का सर्वोच्च स्तर रहा। इसका कारण पैसे की कमी से जूझ रही स्वास्थ्य प्रणाली है जो सामान्य टीकाकरण और टीकाकरण अभियान को चलाने के लिए जूझती रही है। वास्तव में खसरा अत्यंत संक्रामक वायरस से फैलता है जिससे अतिसार, देखने या सुनने की क्षति, निमोनिया और मस्तिष्क ज्वर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कुपोषण के साथ मिलकर यह गरीब देशों के अनुमानित 3-6 प्रतिशत संक्रमित लोगों की जान ले लेता है।

मार्च 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सभी सामूहिक टीकाकरण अभियानों पर रोक लगाने को कहना एक झटका था। अप्रैल तक कई देशों ने इन अभियानों को अचानक से रद्द या स्थगित कर दिया। हालांकि, संगठन ने कुछ सुरक्षात्मक नियमों के साथ इन्हें दोबारा शुरू करने का निर्देश दिया लेकिन 24 देशों में यह काम शुरू नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों को लगता है कि 2021 में यही स्थिति बनी रहेगी।

देखा जाए तो अभी वैश्विक खसरा के मामले काफी कम हैं। 2020 में लगभग 89,000 मामले कम पाए गए। कुछ हद तक इसका कारण खसरा की निगरानी में कमी हो सकता है और यह भी हो सकता है कि 2019 में खसरा के बहुत अधिक मामलों के कारण प्राकृतिक प्रतिरक्षा निर्मित हो गई हो। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार तालाबंदी के कारण यात्राओं पर प्रतिबंध और शारीरिक दूरी से खसरा वायरस के प्रसार में कमी आने की भी संभावना है।

फिर भी खसरा विशेषज्ञ इसे तूफान के पहले की शांति के रूप में देखते हैं। अभियानों में विलंब से खसरा का खतरा बढ़ता रहेगा। जिस प्रकार कोविड-19 प्रतिबंधों में ढील देने से वायरस पुन: फैल गया है उसी तरह से खसरा का वायरस भी असुरक्षित आबादी पर ज़ोरदार हमला कर सकता है। यदि देशों ने सावधानी नहीं बरती तो जल्दी ही एक बड़ा प्रकोप आ सकता है।

इसका एक उदाहरण 2014-15 का इबोला प्रकोप है जिसके दौरान खसरा टीकाकरण को अनदेखा कर दिया गया था। सबसे अधिक प्रभावित देशों में से लाइबेरिया और गिनी में 2014 और 2015 में खसरा टीकाकरण में मासिक 25 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। हालांकि टीकाकरण अभियान 2015 में फिर से शुरू कर दिए गए लेकिन फिर भी इन दो देशों में खसरा के हज़ारों मामले उभरे जो इबोला महामारी के खत्म होने के दो या तीन साल बाद तक जारी रहे।

वर्तमान महामारी में इथियोपिया पहला ऐसा बड़ा देश है जिसने खसरा टीकाकरण के अभियान को जारी रखा है। कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन इसे विश्व के अन्य देशों के लिए मॉडल के रूप में देखते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन को चाड में एक बड़े प्रकोप की आशंका है जबकि यहां जनवरी में टीकाकरण अभियान पुन: शुरू हो चुका है। अभी भी गिनी, गैबन, अंगोला और केन्या जैसे देश यदि इस वर्ष के मध्य तक टीकाकरण अभियान शुरू नहीं करते हैं तो इन्हें बड़ी महामारी झेलनी पड़ सकती है।

पोलियो का झटका

तीन दशकों से चला आ रहा पोलियो उन्मूलन अभियान कोविड-19 महामारी से पहले ही पिछड़ रहा था और महामारी ने स्थिति को और बदतर बना दिया है। 2019 और 2020 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्राकृतिक पोलियोवायरस के स्थानीय मामलों में वृद्धि हुई। हालांकि, अफ्रीका प्राकृतिक पोलियोवायरस से तो मुक्त हो चुका है लेकिन टीका-जनित पोलियो के स्ट्रेन अभी भी वहां व्याप्त हैं। ऐसी दुर्लभ परिस्थिति तब बनी जब ओरल टीके में प्रयुक्त जीवित परंतु कमज़ोर वायरस उत्परिवर्तित होकर ऐसे स्ट्रेन में परिवर्तित हुआ जो बिना टीकाकृत समुदायों में फैल सकता है और लकवा से पीड़ित करने की क्षमता पा सकता है। पिछले वर्षों की तुलना में प्राकृतिक और टीका-जनित स्ट्रेन से लकवा के मामले काफी अधिक पाए गए हैं। 2019 में कुल 554 मामलों की तुलना में 2020 में 1216 मामले पाए गए। जो 2018 की तुलना में काफी अधिक थे।

गौरतलब है कि पिछले वर्ष मार्च में जिनेवा स्थित ग्लोबल पोलियो इरेडिकेशन इनिशियेटिव (जीपीईआई) ने व्यापक टीकाकरण अभियानों को विराम देते हुए अपने निगरानी कार्यक्रमों और प्रयोगशालाओं को कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में लगा दिया था। इस दौरान 28 देशों में 60 से अधिक अभियान स्थगित किए गए। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के अध्ययन के अनुसार यदि इन अभियानों को पुन: शुरू नहीं किया जाता है तो पोलियो के मामलों में काफी तेज़ी से वृद्धि होगी। इस दौरान पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्राकृतिक पोलियोवायरस उन क्षेत्रों में भी फैल गया जो पूर्व में पोलियो मुक्त थे। फिर भी इन दोनों देशों में लकवे के कुल मामले 2019 में 176 से घटकर 2020 में 140 हो गए। लेकिन इस अंतराल में, पाकिस्तान में टीका-जनित पोलियोवायरस के कारण लकवे के मामले 2019 में 22 से बढ़कर 2020 में 135 हो गए। इस स्ट्रेन ने अफगानिस्तान में प्रवेश करते हुए लगभग 308 बच्चों को लकवे से ग्रसित कर दिया। यही स्ट्रेन अब ताज़िकिस्तान में देखा जा रहा है।

अफ्रीका में विश्व स्वास्थ्य संगठन पोलियो उन्मूलन के समन्वयक पास्कल मकंदा के अनुसार टीका-जनित स्ट्रेन अफ्रीका में आसानी से फैल जाता है। वर्ष 2019 में कुल मामले 328 से बढ़कर 2020 में 500 से अधिक हो गए। इसके अलावा यह वायरस अफ़्रीकी महाद्वीप से कूदकर छह अन्य देशों में फैल गया जिससे प्रभावित देशों की कुल संख्या 18 हो गई। वैसे, एक नए टीके को पिछले वर्ष नवंबर में मंज़ूरी दी गई है जिसके परिणामों की प्रतीक्षा है।

वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्राथमिकता पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तेज़ी से फैल रहे टीका-जनित पोलियोवायरस को रोकने के साथ-साथ प्राकृतिक पोलियोवायरस को भी खत्म करना है। फिलहाल सभी देशों में पोलियो टीकाकरण अभियानों को तेज़ करने के प्रयास चल रहे हैं। इसके अलावा जीपीईआई को उन्मूलन के प्रयासों से जुड़ी समस्याओं से भी निपटना होगा। पाकिस्तान में टीके की सुरक्षा से जुड़ी अफवाहों के कारण पोलियो कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई जबकि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा पोलियो टीकाकरण पर प्रतिबंध लगाने से लगभग 33 लाख बच्चों को टीका नहीं लग पाया। इन दिनों अफ्रीका में अफवाह आम है कि पोलियो टीकाकरण अभियान का उपयोग करते हुए अफ्रीकी बच्चों पर गिनी पिग के रूप में कोविड-19 टीकों का परीक्षण किया जा रहा है।

फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है कि टीकाकरण अभियानों को पुन: शुरू करने से पिछले कुछ महीनों में काफी गिरावट आई है। अभी के लिए, कई देशों का ध्यान पूर्ण रूप से कोविड-19 की ओर है जबकि खसरा, पोलियो और टीबी को ठंडे बस्ते में डाला हुआ है। इथियोपिया और भारत जैसे देश पहले से ही इन समस्याओं पर कार्य कर रहे हैं। वैज्ञानिक भी इन समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद रखते हैं क्योंकि इन बीमारियों से सम्बंधित मामले और मौतें कोविड-19 से भी अधिक हैं। बहरहाल जब महामारी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है और कोविड-19 टीके अभी जारी ही हुए हैं, इन बीमारियों को बड़े स्तर पर अनदेखा किया जा रहा है।

मीथेन मिटिगेशन हर साल ढाई लाख से ज़्यादा मौतों को रोक सकता है: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की नेतृत्व में क्लाइमेट एंड क्लीन एयर कोएलिशन (जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, हमारे लिए मौजूदा मीथेन मिटिगेशन के उपाय 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग को 0.3 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर सकते हैं। इतना ही नहीं, मीथेन मिटिगेशन प्रत्येक वर्ष 255000 समय से पहले होने वाली मौतों, 775000 अस्थमा से संबंधित अस्पताल के दौरों, अत्यधिक गर्मी से 73 अरब घंटो के खोये हुए श्रम, और विश्व भर में 26 मिलियन टन फसल के नुकसान को भी रोकेगा।

इस रिपोर्ट में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के लिए तेल और गैस, कृषि, और अपशिष्ट  के बीच व्यापक उपायों को लागू करना सबसे मज़बूत लीवर (उत्तोलक) है। मीथेन मिटिगेशन ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए मौजूदा सबसे अधिक लागत प्रभावी रणनीतियों में से भी एक है। मीथेन प्राकृतिक गैस का प्रमुख घटक है, जिसे अक्सर उद्योग द्वारा स्वच्छ ईंधन स्रोत के रूप में प्रचारित किया जाता है। पर मानव निर्मित मीथेन उत्सर्जन जलवायु को गर्म करने में CO2 की तुलना में 80 गुना अधिक शक्तिशाली है। यह रिपोर्ट पता करती है कि मिथेन को सीमित करने से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और कृषि लाभ होंगे – मीथेन ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का अग्रदूत है और इसे कम करने से ओज़ोन वायु प्रदूषण में कमी आएगी।

2040 तक मीथेन उत्सर्जन में 45% तक की कटौती से 180,000 समय से पहले होने वाली मौतों और आधे मिलियन से अधिक अस्थमा से संबंधित आपातकालीन अस्पताल के दौरों को रोका जा सकता है। इससे वैश्विक फसल की पैदावार भी प्रति वर्ष 26 मिलियन टन बढ़ सकती है। रिपोर्ट विवरण करती है कि मुख्य रूप से तेल और गैस क्षेत्र में मीथेन वेंटिंग और लीक को ठीक करके आसानी से उपलब्ध समाधान 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30% की कटौती कर सकते हैं।

रिपोर्ट ऐसे वक़्त पर जारी हुई है जब नए नियमों पर बहस की जा रही है, जिससे गैस आयात पर मीथेन मानकों को लागू कर सकते हैं। अब तक, मीथेन उत्सर्जन पर कोई सामान्य रूपरेखा या सीमा नहीं है और उत्सर्जन में कमी आने का कोई संकेत नहीं है। वायुमंडलीय मीथेन में एक भारी महोर्मि भी अमेरिकी गैस उत्पादन में भारी वृद्धि के साथ सहसंबद्ध है। यूएस गैस दुनिया की सबसे अशुद्ध में शामिल है और मुख्य रूप से यूरोप और एशिया में उभरते बाजारों में अपना निर्यात भेजती है।

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि गैस उद्योग से मीथेन के उत्सर्जन को अमेरिका में 60% तक कम करके आंका गया है, अन्य अध्ययनों में विश्व स्तर पर 25-40% का अंदाज़ा दिया गया है। मीथेन उत्सर्जन पर उद्योग के कार्रवाई करने के लिए नियामकों और निवेशकों का दबाव बढ़ रहा है। 29 अप्रैल को, अमेरिकी सीनेट ने तेल और गैस के कुओं से रिसाव को नियंत्रित करने के लिए ओबामा-युग के नियमों को बहाल करने के लिए एक द्वि-पक्षीय वोट पारित किया। यह कंपनियों को नए ड्रिलिंग साइटों से मीथेन की निगरानी, प्लग और कब्ज़ा करने की आवश्यकता रखता है।

तेज़ी से वार्मिंग के दर को कम करने और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि को सीमित करने के वैश्विक प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान करने के लिए मानव-निर्मित मीथेन उत्सर्जन को कम करना सबसे प्रभावी रणनीतियों में से एक है। प्राथमिकता विकास के लक्ष्यों में योगदान करने वाली अतिरिक्त उपायों के साथ, उपलब्ध लक्षित मीथेन उपाय मिलकर 2030 तक मानव-निर्मित मीथेन उत्सर्जन को 45 प्रतिशत या प्रति वर्ष 180 मिलियन टन (Mt/yr) तक कम कर सकते हैं।

यह 2040 के दशक तक ग्लोबल वार्मिंग के लगभग 0.3°C से बचने में मदद करेगा और सभी दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन प्रयासों को पूरा करेगा। यह प्रत्येक वर्ष, 255000 समय से पहले होने वाली मौतों, 775000 अस्थमा से संबंधित अस्पताल के दौरों, अत्यधिक गर्मी से 73 अरब घंटो के खोये हुए श्रम, और विश्व भर में 26 मिलियन टन फसल के नुकसान को भी रोकेगा।

वैश्विक मीथेन उत्सर्जन का आधे से अधिक मानव गतिविधियों द्वारा तीन क्षेत्रों में होता है: जीवाश्म ईंधन (मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जन का 35 प्रतिशत), अपशिष्ट (20 प्रतिशत) और कृषि (40 प्रतिशत)। जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में, तेल और गैस निष्कर्षण, प्रसंस्करण और वितरण 23 प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार है, और कोयला खनन 12 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है। अपशिष्ट क्षेत्र में, लैंडफिल और अपशिष्ट जल वैश्विक मानवजनित उत्सर्जन के लगभग 20 प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार है। कृषि क्षेत्र में, खाद और एंटेरिक किण्वन से पशुधन उत्सर्जन लगभग 32 प्रतिशत और चावल की खेती वैश्विक मानवजनित उत्सर्जन के 8 प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार है।

  • वर्तमान में उपलब्ध उपाय 2030 तक इन प्रमुख क्षेत्रों से लगभग 180 Mt/yr, या 45 प्रतिशत तक, उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। यह एक लागत प्रभावी कदम है जो जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) 1.5°C लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) द्वारा विश्लेषण किए गए परिदृश्यों के अनुसार, इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को 2030 तक 40 से 45 प्रतिशत तक कम किया जाना चाहिए, कार्बन डाइऑक्साइड और अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों सहित सभी क्लाइमेट फ़ोर्सेर्स (जलवायु पर ज़ोर डालने वाले कारक) की  मात्रा में बड़े पैमाने पर पर्याप्त समकालिक गिरावट के साथ। (धारा 4.1)
  • आसानी से उपलब्ध लक्षित उपाय हैं जो 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को 30 प्रतिशत कम कर सकते हैं, लगभग 120 Mt/yr। इनमें से लगभग आधी प्रौद्योगिकियाँ जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में उपलब्ध हैं जिसमे उत्सर्जन के स्थल पर और उत्पादन / ट्रांसमिशन की लाइनों पर मीथेन को कम करना अपेक्षाकृत आसान है। अपशिष्ट और कृषि क्षेत्रों में उपलब्ध लक्षित समाधान भी उपलब्ध हैं। पर वर्तमान में केवल लक्षित समाधान अकेले 2030 तक 1.5°C के अनुरूप मिटिगेशन को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसे प्राप्त करने के लिए, अतिरिक्त उपायों को तैनात किया जाना चाहिए, जो कि 2030 मीथेन उत्सर्जन को और 15 प्रतिशत कम कर सकते हैं, लगभग 60 Mt/yr। (धारा 4.1 और 4.2)
  • उपलब्ध लक्षित उपायों में से लगभग 60 प्रतिशत, क़रीब 75 Mt/yr, की कम मिटिगेशन लागतें 2 हैं, और उनमें से सिर्फ 50 प्रतिशत से अधिक की नकारात्मक लागत है – उपाय पैसे बचाने के द्वारा जल्द खुद का भुगतान करते हैं (चित्रा SDM2)। कम लागत वाली अबेटमेंट (उन्मूलन) क्षमतायें तेल और गैस के टोटल के 60-80 प्रतिशत से लेकर कोयले के 55-98 प्रतिशत और अपशिष्ट क्षेत्र में लगभग 30-60 प्रतिशत तक रेंज करती हैं। नकारात्मक लागत अबेटमेंट के लिए सबसे बड़ी क्षमता तेल और गैस उप-क्षेत्र में है जहां पकड़ी गयी मीथेन वातावरण में छोड़ने के बजाय राजस्व में जोड़ दी जाती है। (धारा 4.2)
  • विभिन्न क्षेत्रों में मिटिगेशन क्षमता देशों और क्षेत्रों के बीच भिन्न होती है। यूरोप और भारत में सबसे अधिक क्षमता अपशिष्ट क्षेत्र में है; चीन में कोयला उत्पादन और उसके बाद पशुधन में; अफ्रीका में तेल और गैस के बाद पशुधन से; एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, चीन और भारत को छोड़कर, यह कोयला और अपशिष्ट में; मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका और रूस / पूर्व सोवियत संघ में यह तेल और गैस से है; और लैटिन अमेरिका में यह पशुधन उपसमूह से है। विशेष रूप से अपशिष्ट क्षेत्र में और अधिकांश प्रदेशों में कोयला उप-क्षेत्र और उत्तरी अमेरिका में तेल और गैस उप-क्षेत्र के लिए, इन प्रमुख अबेटमेंट क्षमता के बहुमत को कम लागत पर प्राप्त किया जा सकता है, यूएस $ 600 प्रति टन से कम। (धारा 4)
  • सभी उपायों से मिटिगेशन क्षमता 2030 और 2050 के बीच बढ़ने की उम्मीद है, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन और अपशिष्ट क्षेत्रों में।
  • वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए आवश्यक मीथेन मिटिगेशन के स्तर को अकेले व्यापक डीकार्बोनाइज़ेशन रणनीतियों द्वारा प्राप्त नहीं किया जाएगा। व्यापक रणनीतियों में पाए जाने वाले शून्य-कार्बन समाज में परिवर्तन का समर्थन करने वाले संरचनात्मक बदलाव केवल अगले 30 वर्षों में आवश्यक मीथेन कटौती के सिर्फ लगभग 30 प्रतिशत को प्राप्त करेंगे। पर्याप्त मीथेन मिटिगेशन को प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से मीथेन को विशिष्ट रूप से लक्षित करने वाली केंद्रित रणनीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। साथ ही साथ, भविष्य में बहुत बड़े पैमाने पर अप्रमाणित कार्बन निष्कासन प्रौद्योगिकियों की तैनाती पर निर्भर हुए बिना, 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक वार्मिंग को सीमित रखने के लक्ष्य के साथ प्राकृतिक गैस अवसंरचना का विस्तार और उपयोग असंगत है।

क्या मौजूदा एलपीजी सब्सिडी व्यवस्था से गरीबों को हो रहा है नुकसान?

हाँ लाखों भारतीय तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) (एलपीजी) की कीमत में रिकॉर्ड वृद्धि के लिए सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार LPG सब्सिडी नीति के डिजाइन में बदलाव नहीं करती है तो गरीब परिवारों को LPG समर्थन से, संपन्न उपभोक्ताओं की तुलना में, 2 गुना कम लाभ हो सकता है।एक नई रिपोर्ट के अनुसार (जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड द इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी से भारत में LPG सब्सिडियों को कैसे लक्षित किया जाए), जब केंद्र सरकार की सभी ऊर्जा सब्सिडी का लगभग 28% LPG सब्सिडी में शामिल था, तब झारखंड के ग्रामीण और शहरी हिस्सों में सबसे गरीब 40% परिवारों को FY (वित्त वर्ष) 2019 में सरकार LPG सहायता का 30% से कम प्राप्त हुआ ।
सरकार ने मई 2020 में कम तेल की कीमतों के कारण LPG सब्सिडी को रोक दिया और इसके परिणामस्वरूप घरेलू LPG सिलेंडर दरों में कमी आई। पर हाल ही में, LPG सिलेंडर की कीमतें मई 2020 में INR 594 से बढ़कर मार्च 2021 में INR 819 हो गई हैं, जिससे लाखों भारतीय खाना पकाने के ईंधन का खर्च उठाने से जूझ  रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि गरीब परिवारों के लिए LPG मूल्य समर्थन महत्वपूर्ण है और इसे तत्काल लागू किए जाने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा नीतियों को सबसे ज़रूरतमंद लोगों का समर्थन करने के लिए रिडिज़ाइन  (नया स्वरूप देने) करने की जरूरत है।

रिपोर्ट की लेखिका श्रुति शर्मा, ने कहा, “यह स्पष्ट है कि गरीब परिवारों को LPG सब्सिडी की आवश्यकता है, इसलिए जब सरकार LPG सब्सिडी को फिर से लागू करती है, तो उसे पुरानी गलतियों को को दोहराने से बचना चाहिए और लाभों को अन्यथा कम स्वच्छ बायोमास-आधारित ठोस ईंधन पर निर्भर होने के लिए मजबूर हैं उन गरीब परिवारों की ओर निर्देशित करना चाहिए। प्रतिगामी सब्सिडी से दूर होने और आर्थिक रूप से कठिन समय के दौरान सरकार के करोड़ों रुपये बचाने के लिए सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना महत्वपूर्ण होगा।”

विशेषज्ञों के मुताबिक, सब्सिडी वितरण में सुधार में मुख्य अड़चन संपन्न घरों में सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की अधिक खपत है। भारत के अधिकांश ग्रामीण परिवारों में सब्सिडी वाले LPG के बजाय स्वतंत्र रूप से उपलब्ध लकड़ी और बायोमास-आधारित ईंधन का अधिक उपयोग जारी है, जबकि अधिक संपन्न घरों में सब्सिडी वाले एलपीजी की अधिक खपत है और उन्हें सब्सिडी का और बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि LPG सब्सिडी की दक्षता पर डाटा की कमी ने सरकार को वितरण में असमानता को पहचानने से रोका है। शर्मा कहती हैं कि, “झारखंड के मामले के अध्ययन से स्पष्ट है कि गरीब परिवारों की सही पहचान करने में नॉलेज गैप (ज्ञान में अंतर) है। अगर हम अप्राप्यता (और महंगाई) की समस्या को ठीक करना चाहते हैं, तो लक्ष्यीकरण महत्वपूर्ण है।”

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लाभार्थियों के एक संकीर्ण सबसेट पर सब्सिडी लाभ का ध्यान केंद्रित करना न केवल सबसे गरीब उपभोक्ताओं का समर्थन कर सकता है, बल्कि समग्र कार्यक्रम लागत को भी कम कर सकता है। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि झारखंड में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) (पीएमयूवाई) कनेक्शन के साथ गरीब परिवारों द्वारा सालाना सिर्फ 5.6 सिलेंडर की खपत होती है, —  जो कि 12 की निर्धारित सब्सिडी वाले सिलेंडर की वर्तमान वार्षिक सीमा (या कोटा) से बहुत कम है। जब तक गरीब परिवार अपनी LPG सिलेंडर खपत नहीं बढ़ाते हैं, सरकार वार्षिक सीमा में 12 से 9 सिलेंडर की कटौती पर विचार कर सकती है। अध्ययन का अनुमान है कि, बिना लाभ के औसत वितरण में ज़्यादा बदलाव किए, यह ग्रामीण क्षेत्रों में सब्सिडी के खर्च को 14% और शहरी क्षेत्रों में 19% तक कम कर सकता है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि गरीबी और घर PMUY लाभार्थी थे या नहीं के इसके बीच कोई ठोस संबंध नहीं था:  PMUY और गैर-PMUY दोनों परिवारों के बीच निम्न-आय और उच्च-आय वाले परिवारों का मिश्रण था। इसका मतलब यह है कि केवल PMUY लाभार्थियों पर सब्सिडी का ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करना – पिछले कई वर्षों में एक आम तौर पर प्रसारित सुझाव – समाधान की तुलना में अधिक समस्याएं पैदा कर सकता है। अल्पावधि में, केंद्र को ज्ञान अंतर की मैपिंग और पूरे भारत में LPG सब्सिडी की इक्विटी की पहचान करने में निवेश करना चाहिए। मध्यम अवधि में, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि राज्य सरकारों को ज़्यादा उत्पन्न घरों की बेहतर पहचान करने और उनकी LPG सब्सिडी को प्रतिबंधित करने के लिए वाहन स्वामित्व जैसे होशियार संकेतकों का परीक्षण करने पर विचार करें। अध्ययन के सह-लेखक क्रिस्टोफर बीटन ने कहा, गरीबी प्रासंगिक है, और इस रिपोर्ट में झारखंड के लिए हस्तक्षेप का परीक्षण किया गया है, एक उच्च गरीबी वाला राज्य, इसलिए निष्कर्ष निम्न गरीबी के स्तर वाले राज्यों के लिए शायद समान नहीं हों।”

बीटन ने कहा कि, “कोविड-19 संकट ने गरीब घरों की आय को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, और आगे LPG सब्सिडी के लिए अपना समर्थन बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। LPG सब्सिडी पर स्पष्टता की कमी गरीब घरों को, जो गंदे बायोमास का उपयोग करने के बजाय असुरक्षित LPG का खर्च नहीं उठा सकते हैं, पीछे ढकेल सकती है, जिससे महिलाओं और छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा – हमने पाया कि पहले से ही सबसे गरीब परिवारों को, बेहतर घरों में केवल 3% की तुलना में, अपने मासिक खर्च का 9% -11% समर्पित करना होता है। सरकार को सबसे ज़्यादा गरीबों के लिए सामर्थ्य बढ़ाने के लिए LPG सब्सिडी के बेहतर लक्ष्यीकरण पर विचार करना चाहिए। ”

Tamil Nadu 2021: तो इस दिन CM पद की शपथ लेंगे एमके स्टालिन, बोले-“चुनावी वादों को…”

तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के दौरान डीएमके ने जीत हासिल की है और एआईएडीएमके को हार का सामना करना पड़ा है. जिसके चलते अब ये तय हो गया है कि डीएमके अध्यक्ष स्टालिन मुख्यमंत्री बनेंगे.

दरअसल तमिलनाडु में 234 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें वोटिंग के मुताबिक डीएमके 132 सीटों पर आगे है, जबकि सामान्य बहुमत के लिए 118 सीटों की जरूरत होती है.

द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री होंगे। वे पहली बार राज्य की कमान संभालने जा रहे हैं। द्रमुक के पिछले कार्यकाल में वे उपमुख्यमंत्री और स्थानीय प्रशासन मंत्री थे। रविवार को मतगणना जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, यह स्पष्ट होता गया कि द्रमुक सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक से सत्ता छीन रही है।

रुझानों और चुनाव परिणामों से द्रमुक कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। कोरोना दिशानिर्देशों के बावजूद वे पटाखे छोड़ने लगे एवं पार्टी मुख्यालय अन्ना अरिवलयम में उन्होंने मिठाइयां बांटी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु की जनता को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनकी पार्टी राज्य की भलाई के लिए काम करती रहेगी। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद दिया, जिन्होंने कड़ा परिश्रम किया। मतगणना के हर दौर के बाद द्रमुक और इसके सहयोगियों का प्रदर्शन सुधरता गया।

केरल के CM पिनराई विजयन ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद को सौंपा इस्तीफा, जल्द होगा नई सरकार का गठन

p vijayan

केरल में सत्तारूढ़ माकपा नीत एलडीएफ का नेतृत्व करने वाले मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने छह अप्रैल को हुए विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज करने के बाद नए मंत्रिमंडल के गठन से पहले सोमवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की है। भाजपा राज्य में 11.30 प्रतिशत मत पाने के बाद भी एक भी सीट नहराजभवन से जुड़े सूत्रों ने बताया कि विजयन को नयी सरकार के शपथ ग्रहण लेने तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने के लिए कहा गया है.

एलडीएफ ने इतिहास रचते हुए केरल में फिर से सत्ता में वापसी की और राज्य में वाम और कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे के बारी-बारी से सत्ता में आने के दशकों पुराने चलन को तोड़ दिया.

एलडीएफ ने 140 सदस्यीय विधानसभा में 99 सीटें जीतीं जबकि विपक्षी यूडीएफ ने 41 सीटें जीतीं. वहीं, भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पायी.  जनता को यकीन है कि एलडीएफ की सरकार ही केरल में शांति और प्रेम की भावना को बनाए रख सकती है.

मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को बताया हत्यारा तो SC ने कहा, “टिप्पणी को कड़वी दवा समझे”

उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 के मामले बढ़ने के लिए निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने और उनपर हत्या के आरोपों में मुकदमा चलाने जैसी मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणियों के खिलाफ निर्वाचन आयोग की याचिका पर अपना फैसला सोमवार को सुरक्षित रख लिया।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह ने आयोग के वकील राकेश द्विवेदी की दलीलों को सुना. द्विवेदी ने कहा कि हाई कोर्ट ने आयोग को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. यह भी नहीं समझा कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन किसी राज्य की आपदा प्रबंधन ऑथोरिटी करवाती है. इस पर जजों ने कहा, “ऐसा नहीं कह सकते कि आयोग की कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं बनती.”

इस दलील से असंतुष्ट जजों ने कहा, “गोली चलवाने के लिए तो कोई नहीं कह रहा. आपने ही बाद में सर्क्युलर जारी किया कि 500 लोगों से ज़्यादा की रैली नहीं हो सकती. ऐसा पहले भी तो हो सकता था.” वकील ने कहा, “वह सर्क्युलर पश्चिम बंगाल के लिए जारी हुआ. तब तक कोरोना की स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी थी. तमिलनाडु में चुनाव 4 अप्रैल को पूरे हो चुके थे.”

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी टिप्पणियों पर मीडिया को खबर नहीं देनी चाहिए, इस तरह का अनुरोध करना ‘बहुत अस्वाभाविक’ है और इसे हर उस चीज पर रिपोर्ट करनी चाहिए जो जिम्मेदारी तय करने से जुड़ी हो।

पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में मीडिया महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली प्रहरी है और उसे उच्च न्यायालयों में हुई चर्चाओं की रिपोर्टिंग से रोका नहीं जा सकता है।

कर्नाटक में ऑक्सीजन की कमी के चलते 24 लोगों की मौत, राहुल गांधी बोले-‘सिस्टम’ के जागने से पहले…”

कांग्रेस ने कर्नाटक के चामराजनगर जिला अस्पताल में चिकित्सीय ऑक्सीजन की कथित तौर पर कमी होने से 24 लोगों की मौत होने को लेकर सोमवार को राज्य की भाजपा सरकार पर निशाना साधा और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के.

कांग्रेस पार्टी ने राज्य की भाजपा सरकार पर निशाना साधा और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के.सुधाकर के इस्तीफे की मांग की। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘ये मौते हैं या हत्या? इनके परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है। ‘सिस्टम’ के जागने से पहले लोगों को और कितनी पीड़ा सहनी पड़ेगी?’’

कांग्रेस महासचिव और कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने बी एस येदियुरप्पा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘येदियुरप्पा सरकार की लापरवाही के कारण हत्या हुई है। स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए।’’

उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्री हालात को संभालने में सक्षम नहीं हैं. गौरतलब है कि चामराजनगर में जिला अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी के चलते पिछले 24 घंटों में 24 मरीजों की मौत हो गई है. अधिकारियों ने बताया कि मृतकों में कोविड-19 के 23 मरीज भी हैं.

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