उत्तराखंड में केदारनाथ जैसी आपदा का खतरा बढ़ा; 308 गांवों का विस्थापन अटका, कई इलाकों में बारिश का यलो अलर्ट जारी

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The danger of disaster like Kedarnath increased in Uttarakhand

उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते कई इलाकों में लैंडस्लाइड हो रही है। मौसम विभाग ने देहरादून, नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़ और टिहरी समेत कई इलाकों में बारिश का यलो अलर्ट जारी किया है। नदियां उफान पर हैं। इससे स्थानीय लोगों में बादल फटने की दहशत है। इस साल प्री-मानसून में ही उत्तराखंड में चार अलग-अलग जगहों पर बादल फट चुके हैं।

वैज्ञानिक इस बात से चिंतित है कि इन घटनाओं से 2013 की केदारनाथ जैसी त्रासदी फिर हो सकती है। आपदा की दृष्टि से 308 संवेदनशील गांवों का विस्थापन होना था। लेकिन अभी तक यह योजना पूरी नहीं हो सकी है। पिथौरागढ़ जिले में 79, चमोली और बागेश्वर में 40 से ज्यादा गांवों का विस्थापन होना है।

इन गांवों में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ीं
इन गांवों में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के निदेशक पीयूष रौतेला के मुताबिक, उत्तराखंड में बादल फटने की पहली बड़ी घटना 1952 में हुई थी। इससे पौड़ी जिले के दूधातोली की नयार नदी में बाढ़ आ गई थी और सतपुली कस्बे का अस्तित्व खत्म हो गया था। लेकिन अब हर मानसूनी सीजन में 15 से 20 घटनाएं हो रही हैं। केदारनाथ त्रासदी भी बादल फटने के कारण ही हुई थी, जिसमें बीस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। दस हजार अभी तक लापता है।

बादल फटने के 5 बड़े कारण

1. मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के शोध के नतीजे बताते हैं कि मानसून में बारिश तो एक समान दर्ज हो रही है, पर जो बारिश 7 दिनों में होती थी, वो 3 दिन में हो रही है। जून से सितंबर का मानसून सीजन जुलाई-अगस्त में सिकुड़ रहा है।

2. वाडिया इंस्टीट्यूट के जियो-फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार कहते हैं कि उत्तराखंड में पहले भी बादल फटते थे। लेकिन अब मल्टी क्लाउड बर्स्ट यानी बहुत सारे बादल एक साथ एक जगह पर फट रहे हैं।

3. टिहरी बांध बनने से घटनाएं बढ़ी हैं। भागीरथी नदी का कैचमेंट एरिया पहले कम था, बांध बनने के बाद वो अधिक हो गया। एक जगह इतना पानी इकट्ठा होने से बादल बनने की प्रक्रिया में तेजी आई।

4. पूरे उत्तराखंड में कई जगह हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इससे नदी का प्राकृतिक बहाव रोकने से मुश्किलें बढ़ गई हैं। जलस्तर बढ़ने से कई जगह हालात खराब हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, बादल फटने की घटनाओं में भी इसीलिए तेजी आई है।

5. वैज्ञानिक अतिवृष्टि के लिए वनों के असमान वितरण को कारण मानते हैं। उत्तराखंड के 70% क्षेत्र में वन हैं। मैदानों में वन खत्म होते जा रहे हैं। मानसूनी हवाओं को मैदानों में बरसने के लिए वातावरण नहीं मिलता, जिससे बादल फट पड़ते हैं।

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