आज इकोफ्रेंडली बिजनेस का जमाना है। इसको लेकर लोगों का रुझान बढ़ रहा है। पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ खुद को भी सुरक्षित रखने के लिए लोग इस तरह के बिजनेस को अपना रहे हैं। लोग न सिर्फ पर्यावरण को बचाने की मुहिम से जुड़ रहे हैं, बल्कि इससे बढ़िया कमाई भी कर रहे हैं।
यूपी के वाराणसी में रहने वाले वैभव जयसवाल और असम के रहने वाले अमरदीप बर्धन पेड़ की सूखी पत्तियों से प्लेट, मग, कटोरी जैसे किचन के इस्तेमाल की लगभग सभी चीजें बना रहे हैं। देशभर में उनके प्रोडक्ट की डिमांड है। भारत के बाहर भी वे मार्केटिंग करते हैं। फिलहाल उनकी कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपए है।
33 साल के अमरदीप और 34 साल के वैभव ने 2011 में एक ही कॉलेज से MBA की पढ़ाई की। इसी दौरान दोनों की दोस्ती भी हुई और इकोफ्रेंडली मॉडल के आइडिया की नींव भी पड़ी।
अमरदीप बताते हैं कि हमारे असम में ऐरिका पाम (Areca Palm) के प्लांट खूब होते हैं। उसकी पत्तियां ऐसे ही झड़ जाती हैं और उसका कोई खास उपयोग नहीं हो पाता है। जबकि रिसर्च में इस तरह की बातें थी कि इनसे इकोफ्रेंडली प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं। इसलिए पढ़ाई के दौरान ही यह आइडिया हमारे मन में था और इसको लेकर हम लोग लगातार स्टडी कर रहे थे। कॉलेज में हमने इससे कुछ प्लेट तैयार की थी। तब हमारे बिजनेस प्लान को फर्स्ट प्राइज मिला था। इससे हमारा कॉन्फिडेंस बढ़ गया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों की जॉब लग गई, लेकिन वे अपने आइडिया को लेकर काम करते रहे। साल 2012 में दोनों ने मिलकर 20 हजार रुपए की लागत से ‘प्रकृति’ नाम से असम में अपने बिजनेस की शुरुआत की। वे ऐरिका की सूखी पत्तियों से प्लेट, कटोरी, ग्लास जैसे प्रोडक्ट तैयार करने लगे। जबकि मार्केटिंग का काम दिल्ली से शुरू किया।
सबसे पहले उन्होंने कुछ कैटरर्स और इवेंट होस्ट करने वालों को अपनी प्लेटें सेल की। चूंकि उनका आइडिया यूनीक था तो शादी, पार्टी और बड़े इवेंट्स में उनके प्लेट की डिमांड बढ़ गई। बाद में लोग पर्सनल लेवल पर भी उन्हें ऑर्डर देने लगे। पहले साल करीब 6 लाख का बिजनेस दोनों दोस्तों ने किया।
अमरदीप कहते हैं कि एक साल बाद हम अच्छी स्थिति में पहुंच गए थे। लोगों का भी बढ़िया रिस्पॉन्स मिल रहा था, लेकिन दिक्कत थी प्रोडक्शन की। हमारे पास कोई प्रोडक्शन यूनिट नहीं थी और बड़ी मशीनें भी नहीं ताकि ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर पूरा कर सकें।
कुछ साल बाद हमने अपनी सेविंग्स से तमिलनाडु में एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत की। वहां हमने कुछ कारीगर रखे, उन्हें ट्रेनिंग दी और प्रोडक्शन का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी पहचान बनती गई और कस्टमर्स की संख्या में भी इजाफा होते गया।
साल 2014 में वैभव ने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह इस बिजनेस में लग गए। दो साल बाद यानी 2016 में अमरदीप ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी। तब से दोनों मिलकर साथ काम कर रहे हैं और साल दर साल उन्हें अच्छी ग्रोथ भी मिल रही है।
अमरदीप कहते हैं कि लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो हमने अपने प्रोडक्ट की वैराइटी बढ़ा दी। प्लेट, कटोरी, मग, ग्लास सहित 70 से ज्यादा वैराइटी के प्रोडक्ट फिलहाल हम बना रहे हैं। प्रोडक्शन के लिए अब तमिलनाडु के साथ ही कर्नाटक में भी हमने काम शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि हम इसके लिए कोई प्लांट नहीं काटते हैं। यहां तक कि पेड़ से पत्तियां भी नहीं तोड़ते हैं। हम सिर्फ उन्हीं पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं, जो सूखी होती हैं और खुद-ब-खुद पेड़ से गिरी हों।
वे कहते हैं कि पिछले साल और फिर इस साल कोरोना के चलते प्रोडक्शन और मार्केटिंग दोनों प्रभावित हुआ। हम जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहे थे, उस पर एक तरह से ब्रेक लग गया। हालांकि अच्छी बात है कि अब हालात वापस बदल रहे हैं और लोग भी इकोफ्रेंडली ट्रेंड की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं। उनमें जागरूकता बढ़ी है।
मार्केटिंग को लेकर अमरदीप कहते हैं कि शुरुआत में तो हमने कैटरर्स और इवेंट होस्ट वालों को टारगेट किया। फिर सोशल मीडिया की मदद ली। लगातार पोस्ट और अपडेट करना शुरू किया। इससे अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसके बाद हम ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर आ गए, खुद की वेबसाइट के जरिए मार्केटिंग शुरू की।
फिलहाल वे ऑनलाइन के साथ ऑफलाइन भी मार्केटिंग कर रहे हैं। देश के कई शहरों में उनके रिटेलर्स हैं। वे भारत के साथ ही अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित 18 देशों में अपने प्रोडक्ट की सप्लाई कर रहे हैं। हर महीने उन्हें अच्छी-खासी संख्या में ऑर्डर मिल रहे हैं। 140 लोगों को उन्होंने रोजगार भी दिया है।
कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
अमरदीप बताते हैं कि हम अपना प्रोडक्ट बनाने के लिए किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हम सिर्फ पानी की मदद से सभी प्रोडक्ट बनाते हैं। सबसे पहले वे किसानों से सूखे पत्तें कलेक्ट करते हैं। इसके बाद पानी से उसकी सफाई होती है। फिर उन्हें कुछ देर तक पानी के अंदर डालकर रख दिया जाता है। जब अच्छी तरह पानी उनमें मिल जाए तो धूप में सुखाया जाता है।
इसके बाद मशीन की मदद से उन्हें हिट और कम्प्रेस किया जाता है। मशीन में अलग-अलग साइज की प्लेट्स लगी होती हैं। उससे प्रोसेसिंग के बाद प्लेट, कटोरी जैसे प्रोडक्ट बनकर तैयार होते हैं। इसके बाद उनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग का काम होता है। इसमें महिलाओं की बड़ी भूमिका होती है। ज्यादातर प्रोडक्शन का काम महिलाएं ही संभालती हैं।
आप भी इस तरह की पहल से जुड़कर कमाई करना चाहते हैं?
भारत में कर्नाटक, केरल और असम में सबसे ज्यादा ऐरिका पाम का प्रोडक्शन होता है। यहां ऐरिका के सूखे पत्तों की कमी नहीं होती है। अगर आप इन राज्यों से हैं या ऐरिका के पत्तों की व्यवस्था आप कर सकते हैं तो आपके लिए यह बिजनेस के लिहाज से अच्छा सेक्टर है। अगर आपका बजट कम है तो दो से तीन लाख रुपए में आप कुछ कारीगर रखकर मशीन की मदद से प्रोडक्ट बनाना शुरू कर सकते हैं। अगर आपके लिए ऐरिका पाम के पत्तों को जुटाना मुश्किल टास्क है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं है।
आजकल बांस, धान की पराली, गन्ने का वेस्ट, बनाना वेस्ट से भी बड़ी संख्या में इकोफ्रेंडली होममेड प्रोडक्ट तैयार किए जा रहे हैं। अभी इनकी डिमांड भी है और लागत भी इसमें कम है। विशाखापट्टनम की रहने वाली विजय लक्ष्मी पिछ्ले दो साल से गन्ने के वेस्ट से इकोफ्रेंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर रही हैं। हर महीने 200 से ज्यादा ऑर्डर उनके पास आ रहे हैं। कई बड़े होटलों में भी उनके प्रोडक्ट्स जाते हैं।